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कविता

इंस्पेक्टर मातादीन के राज में

सुशांत सुप्रिय


(हरिशंकर परसाई को समर्पित)

जिस दसवें व्यक्ति को फाँसी हुई
वह निर्दोष था
उसका नाम उस नौवें व्यक्ति से मिलता था
जिस पर मुकदमा चला था
निर्दोष तो वह नौवाँ व्यक्ति भी था
जिसे आठवें व्यक्ति की शिनाख्त पर
पकड़ा गया था
जिसे एक सातवें ने फँसाया था
जो खुद छठे की गवाही की वजह से
मुसीबत में आया था

छठा भी क्या करता
उसके ऊपर उस पाँचवें का दबाव था
जो खुद चौथे का मित्र था
चौथा भी निर्दोष था
तीसरा उसका रिश्तेदार था
जिसकी बात वह टाल नहीं पाया था
दूसरा तीसरे का बॉस था
लिहाजा वह भी उसे 'ना' नहीं कह सका था
निर्दोष तो दूसरा भी था
वह उस हत्या का चश्मदीद गवाह था
किंतु उसे पहले ने धमकाया था

पहला व्यक्ति ही असल हत्यारा था
किंतु पहले के विरुद्ध
न कोई गवाह था, न सबूत
इसलिए वह कांड करने के बाद भी
मदमस्त साँड़-सा
खुला घूम रहा था
स्वतंत्र भारत में...

 


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